पियाजे का ज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत -
जीन पियाजे एक जीव वैज्ञानिक थे उनकी रुचि बाल विकास एवं ज्ञानात्मक मनोविज्ञान में अधिक थी जिसके फलस्वरुप इन्होंने ज्ञानात्मक विकास से संबंधित अनेक कार्य किए पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत से जो सबसे महत्वपूर्ण बात पता लगी वह यह की बालकों में वास्तविकता के स्वरूप के बारे में चिंतन करने तथा उसे खोज करने की शक्ति ना तो सिर्फ बालकों के परिपक्वता स्तर पर और न सिर्फ उसके अनुभव पर निर्भर करता है बल्कि इस दोनों की अंतः क्रिया द्वारा निर्धारित होता है पियाजे के अनुसार जीव की संरचना समायोजन और संगठन की पूरक क्रियाओं के कारण होती है इसी कारण उसने बुद्धि को जैविक समायोजन की घटना कहा है l
पियाजे की आधारभूत धारणाएं -
1- स्कीमा -
पियाजे का विचार था कि प्रत्येक व्यक्ति का वस्तुओं, व्यक्तियों और जीवन की परिस्थितियों के साथ व्यवहार करते समय अपना खुद का ढंग होता है इन्हें स्कीमा कहते हैं यह व्यवहार का एक संगठित पैटर्न होता है स्कीमा 2 तरह से होते है -
a- व्यवहारत्मक स्कीमा - व्यवहारात्मक स्कीमा सामान्य मानव व्यवहार से सम्बन्धित होते है । जब मनुष्य कोई शारीरिक क्रिया करता है तो यह स्कीमा का व्यवहारात्मक प्रकार होता हैं ।
b - ज्ञानात्मक स्कीमा - ज्ञानात्मक स्कीमा व्यक्ति के ज्ञानात्मक विकास से सम्बन्धित होते हैं। जब कोई मनुष्य अपने शैक्षिक पक्ष से किसी समस्या का समाधान कर रहा है तो यह स्कीमा का ज्ञानात्मक प्रकार होता है। पियाजे के अनुसार - स्कीमा जन्म के समय अविकसित रूप में विद्यमान होते है और कुछ विशेष योजनाबद्ध ढंगों से समय के साथ साथ क्रमिक रूप से विकसित होते हैं।
2- आत्मीकरण - पियाजे के अनुसार यह धारणा तब कार्यगर होती है जब बालक एक नई समस्या विषय या स्थिति पर अपने मन में पहले से ही विद्यमान स्कीमा का उपयोग करता है। तात्पर्य पुरानी स्कीमा + नया वातावरण (old schemas + new situation) आत्मीकरण वातावरणीय विशेषताओं का संकेत है अर्थात पिछले अनुभव के आधार पर तैयार की गई पृष्ठभूमि । उदाहरण -यदि नर्सरी कक्षा के बालक को cow के बारे में शिक्षक ने बताया कि गाय के चार पैर होते है और बालक ने अपने पुराने स्कीमा के आधार पर जब उसके सामने cow आये और वह सही पहचान कर ले तो वह आत्मीकरण कहलायेगा ।
3 - समायोजन - इसका अर्थ होता है नये विचारों या समस्या को समायोजित करने के लिए विद्यमान स्कीमा में परिवर्तन करना । यह सामान्यतः तब होता है जब पुरानी स्कीमा काम नहीं करती और बालक को नये को पुराने के साथ समायोजित करना पड़ता है। इसमें बालक दूसरो की नकल करता है एवं अपनी खुद की स्कीमा का दमन करके समायोजन की प्रवृत्ति दर्शाता है।
4 - सन्तुलीकरण- Equilibration शब्द equilibrium शब्द पर आधारित है जिसका अर्थ है ' एकरूप मानसिक सन्तुलन ' की अवस्था । जब बालक के समक्ष एक नई समस्या आती है और उसकी वर्तमान स्कीमा काम नहीं करती यह परिस्थिति बालक के मन में असन्तुलन पैदा कर देती है। इस चरण में बालक को अपना ध्यान नई धारणा या स्थिति पर केन्दित करना होता है। वह नई स्कीमा का विकास करना या अपनी पुरानी स्कीमा में परिवर्तन करता है। ताकि वह उसकी नई स्थिति के अनुकूल हो। सन्तुलीकरण की यह स्थिति बालक को सीखने और विकसित होने में सहायता करती है।
ज्ञानात्मक (बौद्धिक ) विकास की अवस्थाएँ -
जीन पियाजे जन्म से परिपक्वता तक ज्ञानात्मक विकास की प्रक्रिया का वर्णन निम्नलिखित चार अवस्थाओं के अन्तर्गत करता है -
1 - ज्ञानेन्द्रिय गामक अवस्था(Sensory-motor stage) (जन्म से 18 महीने की आयु तक ) - यह अवस्था मुख्यत: ज्ञानेन्द्रिय और शरीर के गामक अनुभव पर निर्भर करती है। बालक आत्म - अभिव्यक्ति और आदान - प्रदान के लिए अपने शरीर पर निर्भर होता है। पियाजे के अनुसार इस अवस्था की विभिन्न विशेषताएं निम्नलिखित है -
1- ज्ञानेन्द्रिय गामक क्रियाओं का समन्वय व समाधान(Co-ordination of sensory-motor actions)- विकास सहज क्रिया से ज्ञानेद्रिय गामक समाधान तक बढ़ता है एवं साथ ही इसमें ज्ञानेन्द्रिय अनुभव - दृष्टि ध्वनि स्पर्श और स्वाद समन्वित हो जाते हैं।
2 - जिज्ञासा की उत्पत्ति(Appearance of curiosity)- जिज्ञासा नई वस्तु और पिछले अनुभव के बीच के सम्बन्ध का कार्य है। जैसे - बालक प्रत्येक वस्तुओं को जिज्ञासा वश मुँह में डालने की कोशिश करता है या फिर हाथ से पकड़ने की कोशिश करता है
3 - अनुकरण की उत्पत्ति (Appearance of imitation ) -
शिशु व्यवहार या क्रियाओं का अनुकरण करने या उन्हें दोहराने की प्रवृत्ति दर्शाता है।
4 - वस्तु का स्थायित्व (Object permanence)- प्रारम्भ में नवजात शिशुओं में वस्तुओं के प्रति अल्पकालिक स्थायित्व होता है किन्तु जीवन के 2 वर्ष में बालक वस्तुओं को स्थायी रूप से समझने लगता है इसलिए उन खिलौनो एवं अन्य वस्तुओं को ढूंढता है जो आँखों से ओझल हो जाते हैं।
2 - पूर्व क्रियात्मक अवस्था -(Pre- operational stage ( 18 /2 - 7 वर्ष तक ) इस अवस्था तक तार्किक चिन्तन क्रियाएं पूरी तरह से विकसित नहीं होती है इसलिए इसे पूर्व - क्रियात्मक अवस्था कहते है -
1 - मौखिक भाषा का तेज विकास (Rapid development of spoken language)- इस अवस्था में सर्वप्रथम मौखिक भाषा का विकास तेजी से होता है बालक बड़ी से बड़ी संख्या में शब्दों को समझने लगता है
2- प्रत्यक्ष चिंतन(Perceptual thought)- 4 वर्ष की आयु तक बालक में प्रतीकात्मक और पूर्ण धनात्मक चिंतन विकसित होने लगता है वह स्वयं के साथ और दूसरों के साथ आदान-प्रदान करने में उपयोग करने के लिए नए प्रतिको को ढूंढ लेता है
3 - जीवंत चिंतन (Animistic thinking)- पूर्व क्रियात्मक अवस्था की मुख्य विशेषताओं में से एक Animism कहलाता है Animism का अर्थ है बालक का विश्वास की वस्तुएं इसलिए जीवित है क्योंकि उनमें गति है यदि कोई वस्तु चलती है तो वह जीवित है यदि वह नहीं चलती तो वह जीवित नहीं है उदाहरण ट्रेन चलती है तो वह जीवित है पेड़ नहीं चलता है तो वह जीवित नहीं है
4- चिंतन में यथार्थता (Realism in thinking)- चिंतन में यथार्थता का अर्थ है बालक की काल्पनिक अवस्थाओं को अपने प्रतिदिन के जीवन जैसा वास्तविक समझने की प्रवृत्ति होती है जब बच्चा अगली अवस्था में पहुंचता है तो पूर्व क्रियात्मक चिंतन की यह विशेषताएं आत्म केंद्रित जीवंतता और यथार्थता धीरे-धीरे लुप्त होती जाती है
5- सहज चिंतन(Intuitive thought) - 4 से 7 वर्ष की आयु के बालक का चिंतन तार्किक नहीं होता यह सहज बुद्धि पर आधारित होता है सहज चिंतन संबंधों की आवश्यकता जागरूकता का परिचय देता है लेकिन ऐसी प्रारंभिक समझ मूर्त घटनाओं संबंधित होती है
6- सामाजिक रुचिया (Social interests)- 4 से 7 वर्ष की आयु में बालक अपने इर्द-गिर्द के संसार में सामाजिक रुचियां को विस्तृत करता है वह स्वयं से हटकर वस्तुओं पर ध्यान देने लगता है
3 - मूर्त क्रियात्मक अवस्था -(Concrete operational stage- (7 से 12 वर्ष)
7 वर्ष की आयु में बच्चे मन की गतिविधियों में लग जाने में समर्थ हो जाते हैं पियाजे के अनुसार इस क्रियाएं कहा जाता है क्रियाएं ज्ञानात्मक कम होते हैं जो एक मजबूत नेटवर्क में निकटवर्ती रूप से संगठित होते हैं इस अवस्था की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है
1- मूर्त वस्तुओं का तार्किक चिंतन(Logical thinking of concrete objects)- इस अवस्था में बालक तार्किक चिंतन में समर्थ हो जाता है लेकिन उसका तार्किक चिंतन मूर्त वस्तुओं और क्रिया ही सीमित होता है
2- आत्म केंद्रीयकरण को छोड़ना -( Waving of ego-centricism)- इस अवस्था में बालक आत्म केंद्रीय करण को छोड़कर दूसरों के दृष्टिकोण को समझने लगता है उसकी वाणी अधिक से अधिक सामाजिक और आदान-प्रदान के लिए तैयार रहती है .
3- संरक्षण की समझ - (Understanding of conservation) 7 से 12 वर्ष की आयु में बालक मूर्त क्रियात्मक असंख्यात्मक, लंबाई, क्षेत्रफल और अंत में घनत्व का संरक्षण करने और समझने लगता है.
4- बहु विविध और विपरीत ले जाने योग्य विचार-(Multiple and grouping of objects)-
इस अवस्था के दौरान बालक एक अकेले विषय के बहु विविध आयामों के बारे में सोचने और समझने में समर्थ हो जाता है एवं विचारों को विपरीत ले जाने की योग्य हो जाता है उदाहरण 20 से 1 तक की उल्टी गिनती.
5- वस्तुओं का वर्गीकरण और समूहिकरण (Classification and grouping of objects)-
इस अवस्था के दौरान बालक वस्तुओं का वर्गीकरण करना उसका सामूहिक करण करना उसे क्रम से लगाना इत्यादि को समझने में समर्थ हो जाता है
4- औपचारिक क्रियात्मक अवस्था(Formal Operational stage)- 11/12 वर्ष से ऊपर की अवस्था- इस अवस्था का बालक किशोरावस्था में प्रवेश करता है जिसमें औपचारिक क्रिया की अवस्था एवं एकीकृत की योग्यता का विकास होता है इस अवस्था के दौरान व्यक्ति अपने खुद के निकटतम संसार से परे सोचने और तर्क करने की योग्यता प्राप्त कर लेता है इस अवस्था की महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित है-
1- उच्च स्तरीय संतुलन-(High degree of equilibrium)- इस अवस्था का सबसे मुख्य योग्यता मानसिक क्रिया प्रणाली एवं उच्च स्तरीय संतुलन प्राप्त कर लेना है इसका अर्थ यह है कि वह तर्क की जटिल समस्याओं के साथ प्रभावपूर्ण ढंग से निपट सकता है वह किसी समस्या का समाधान करने की बहुत सारी संभावनाओं की कल्पना कर सकता है
2- अमूर्त नियमों को प्रयोग करने की योग्यता(Ability to use abstract rules)- इस अवस्था में व्यक्ति समस्याओं का समाधान करने के लिए अमूर्त नियमों का प्रयोग करने में समर्थ होता है उदाहरण मैथ के प्रश्नों को सरल विधि से समझ लेना.
3- संबंधत्मक और योजनाबद्ध चिंतन-(Relational and systematic thought)- समस्याओं पर तार्किक चिंतन इस अवस्था में बालक समस्याओं का तार्किक चिंतन करने में समर्थ हो जाता है चाहे वह समस्याएं मूर्त हो अथवा अमूर्त |
4- समझ का स्थानांतरण(Transfer of understanding) - औपचारिक क्रियाओं के विकास से बालक को एक स्थिति से दूसरे स्थिति तक समझ को स्थानांतरित करने में सहायता प्राप्त होती है
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