प्रस्तावना-
मोटिवेशन शब्द मूवर शब्द से निकला है जिसका अर्थ गति करना। यह वह प्रक्रिया है जो क्रिया उत्तेजित करने उन्नति को जारी रखने कार्य के नमूने को नियमित करने तथा दिशा निर्देश देने का कार्य करती है। इसके लिए या शरीर में तंतुओं में शक्ति द्वारा परिवर्तन पैदा करती है।अभिप्रेरणा को अधिगम का हृदय, अधिगम की सुनहरी सड़क अनिवार्ष स्थिति और अधिगम का प्रमुख कारक भी कहा जाता है।
मोटिवेशन की परिभाषा-
जॉनसन के अनुसार- प्रेरणा एक ऐसी मनोवैज्ञानिक या आंतरिक प्रक्रिया है जो किसी आवश्यकता की उपस्थिति में उत्पन्न होती है और ऐसी क्रिया की ओर ले जाती है जो आवश्यकता को संतुष्ट करेगी।
गेट्स के अनुसार- प्रेरक वे शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक भाषाएं हैं जो किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है।
गिलफोर्ड के अनुसार - अभिप्रेरणा कोई भी विशेष आंतरिक कारक की दशा है जो क्रिया को आरंभ करने अथवा बनाए रखने की और प्रवृत्ति होती है।
गुड के अनुसार प्रेरणा कार्य को उत्तेजित करने जारी रखने और नियमित करने की प्रक्रिया है।
क्रो एवं क्रो के अनुसार अभिप्रेरणा का संबंध सीखने में रुचि उत्पन्न करने से है और अपने इसी रूप में वह सीखने का मूलाधार है।
बर्नार्ड के अनुसार- अभिप्रेरणा विशेष लक्ष्य के प्रति क्रियो की उत्तेजना है जहां पहले उद्देश्य के प्रति कोई आकर्षण नहीं था।
जॉनसन के अनुसार- प्रेरणा एक ऐसी मनोवैज्ञानिक या आंतरिक प्रक्रिया है जो किसी आवश्यकता की उपस्थिति में उत्पन्न होती है और ऐसी क्रिया की ओर ले जाती है जो आवश्यकता को संतुष्ट करेगी।
गेट्स के अनुसार- प्रेरक वे शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक भाषाएं हैं जो किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है।
गिलफोर्ड के अनुसार - अभिप्रेरणा कोई भी विशेष आंतरिक कारक की दशा है जो क्रिया को आरंभ करने अथवा बनाए रखने की और प्रवृत्ति होती है।
गुड के अनुसार प्रेरणा कार्य को उत्तेजित करने जारी रखने और नियमित करने की प्रक्रिया है।
क्रो एवं क्रो के अनुसार अभिप्रेरणा का संबंध सीखने में रुचि उत्पन्न करने से है और अपने इसी रूप में वह सीखने का मूलाधार है।
बर्नार्ड के अनुसार- अभिप्रेरणा विशेष लक्ष्य के प्रति क्रियो की उत्तेजना है जहां पहले उद्देश्य के प्रति कोई आकर्षण नहीं था।
अभिप्रेरणा के पक्ष-
1-आवश्यकता- प्रत्येक प्राणी के जीवन को बनाए रखने के लिए उसकी कुछ मौलिक आवश्यकताएं होती हैं जिनकी पूर्ति होना आवश्यक होता है।
बोरिंग के अनुसार- "आवश्यकता प्राणी के भीतर का तनाव है जो कुछ उद्दीपनों के संबंध में प्राणी के क्षेत्र को व्यवस्थित करने में प्रवृत्ति करती है जो उनके प्राप्ति की ओर निर्देशित क्रिया को उत्तेजित करती हैl"
आवश्यकता को दो भागों में बांटा गया है -
¡) शारीरिक आवश्यकता- इसके अंतर्गत भूख, प्यास ,जल,वायु, निद्रा इत्यादि l
¡¡) सामाजिक- मनोवैज्ञानिक आवश्यकता- इसके अंतर्गत सुरक्षा की आवश्यकता , उपलब्धि की आवश्यकता , पहचान की आवश्यकता इत्यादिl
2- चालक- प्राणी की आवश्यकता के कारण जो तनाव की अवस्था उत्पन्न होती है उसे चालक कहते हैं चालक शक्ति का मूल स्रोत है जो मानव प्राणी को क्रियाशील बनता है जैसे जल की आवश्यकता से प्यास चालक भोजन की आवश्यकता से भूख चालक की उत्पत्ति होती है भूख लगना प्यास लगना आंतरिक उत्तेजनाए हैं जो व्यक्ति में तनाव पैदा करती हैं
3 - प्रोत्साहन अथवा उद्दीपन प्रोत्साहन - वातावरण की वस्तुएं हैं जो प्राणी की आवश्यकताओं की पूर्ति करके चालकों की संतुष्टि करती है उदाहरण भूख एक चालक है जिसे भोजन संतुष्ट करता है इस प्रकार भूख चालक केलिए भोजन प्रोत्साहन अथवा उद्दीपन है यह दो प्रकार के होते हैं पहले सकारात्मक प्रोत्साहन प्रशंसा पुरस्कार मुस्कुराहट पैसा इत्यादि दूसरा नकारात्मक प्रोत्साहन दर्द दंड इत्यादि
4- प्रेरक - प्रेरक बहुत व्यापक शब्द है इसमें प्रोत्साहन के अतिरिक्त चालक तनाव आवश्यकता सभी समाहित होते हैं प्रेरक के विभिन्न स्वरूप हैं और इनको विभिन्न नाम से पुकारा जाता है जैसे आवश्यकता इच्छाएं निर्धारक प्रवृत्तियां अभिवृत्तियां इत्यादि l
मैक दुग्गल के अनुसार - प्रेरक वे शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक दशाएं हैं जो किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है
मैसलों का आत्म- सिद्धि सिद्धात
मनोविज्ञान के एक प्राध्यापक अब्राहम मैस्लो एक मानववादी विचारक थे। उनका विचार था कि मनुष्य अपने लिए तथा मानव जाति के लिए एक बेहतर संसार बना सकता था। अभिप्रेरणा और व्यक्तित्व को समझने के लिए अपने उपागम में वह व्यवहारवादियों और मनोविश्लेषण से भिन्न है।
मैस्लो का आत्म सिद्धि सिद्धांत मैस्लो का विचार है कि मानव आवश्यकताओं की वृद्धि विकास और पूर्ति उच्चतम से न्यूनतम तक एक क्रम में व्यवस्थित होती है उसके अनुसार यह निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया -
1-आवश्यकता- प्रत्येक प्राणी के जीवन को बनाए रखने के लिए उसकी कुछ मौलिक आवश्यकताएं होती हैं जिनकी पूर्ति होना आवश्यक होता है।
बोरिंग के अनुसार- "आवश्यकता प्राणी के भीतर का तनाव है जो कुछ उद्दीपनों के संबंध में प्राणी के क्षेत्र को व्यवस्थित करने में प्रवृत्ति करती है जो उनके प्राप्ति की ओर निर्देशित क्रिया को उत्तेजित करती हैl"
आवश्यकता को दो भागों में बांटा गया है -
¡) शारीरिक आवश्यकता- इसके अंतर्गत भूख, प्यास ,जल,वायु, निद्रा इत्यादि l
¡¡) सामाजिक- मनोवैज्ञानिक आवश्यकता- इसके अंतर्गत सुरक्षा की आवश्यकता , उपलब्धि की आवश्यकता , पहचान की आवश्यकता इत्यादिl
2- चालक- प्राणी की आवश्यकता के कारण जो तनाव की अवस्था उत्पन्न होती है उसे चालक कहते हैं चालक शक्ति का मूल स्रोत है जो मानव प्राणी को क्रियाशील बनता है जैसे जल की आवश्यकता से प्यास चालक भोजन की आवश्यकता से भूख चालक की उत्पत्ति होती है भूख लगना प्यास लगना आंतरिक उत्तेजनाए हैं जो व्यक्ति में तनाव पैदा करती हैं
3 - प्रोत्साहन अथवा उद्दीपन प्रोत्साहन - वातावरण की वस्तुएं हैं जो प्राणी की आवश्यकताओं की पूर्ति करके चालकों की संतुष्टि करती है उदाहरण भूख एक चालक है जिसे भोजन संतुष्ट करता है इस प्रकार भूख चालक केलिए भोजन प्रोत्साहन अथवा उद्दीपन है यह दो प्रकार के होते हैं पहले सकारात्मक प्रोत्साहन प्रशंसा पुरस्कार मुस्कुराहट पैसा इत्यादि दूसरा नकारात्मक प्रोत्साहन दर्द दंड इत्यादि
4- प्रेरक - प्रेरक बहुत व्यापक शब्द है इसमें प्रोत्साहन के अतिरिक्त चालक तनाव आवश्यकता सभी समाहित होते हैं प्रेरक के विभिन्न स्वरूप हैं और इनको विभिन्न नाम से पुकारा जाता है जैसे आवश्यकता इच्छाएं निर्धारक प्रवृत्तियां अभिवृत्तियां इत्यादि l
मैक दुग्गल के अनुसार - प्रेरक वे शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक दशाएं हैं जो किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है
मैसलों का आत्म- सिद्धि सिद्धात
मनोविज्ञान के एक प्राध्यापक अब्राहम मैस्लो एक मानववादी विचारक थे। उनका विचार था कि मनुष्य अपने लिए तथा मानव जाति के लिए एक बेहतर संसार बना सकता था। अभिप्रेरणा और व्यक्तित्व को समझने के लिए अपने उपागम में वह व्यवहारवादियों और मनोविश्लेषण से भिन्न है।
मैस्लो का आत्म सिद्धि सिद्धांत मैस्लो का विचार है कि मानव आवश्यकताओं की वृद्धि विकास और पूर्ति उच्चतम से न्यूनतम तक एक क्रम में व्यवस्थित होती है उसके अनुसार यह निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया -
1- शारीरिक आवश्यकता -
शारीरिक आवश्यकता मानव जीवन की उत्तरजीविता और निर्वाह से संबंधित होती हैं मैस्लो ने यह सबसे निम्न क्रम बताया इन आवश्यकताओं में रोटी, कपड़ा, मकान, ऑक्सीजन नींद क्रियाकलाप इत्यादि ज्ञानेंद्रिय संतुष्टि की आवश्यकता शामिल है मैस्लो का विश्वास है कि यह आवश्यकता सभी आवश्यकताओं में सबसे प्रबल होती हैं फिर भी आत्म-सिद्धि के लिए सबसे कम महत्वपूर्ण है यदि व्यक्ति इन आवश्यकताओं की पूर्ति से वंचित रहता है तो सभी अन्य आवश्यकता ना तो प्रकट होती हैं और ना ही काम में होती हैं मैस्लो ने निष्कर्ष निकाल कि बच्चों को कार्य के लिए अभिप्रेरित करने हेतु आवश्यकता की पूर्ति एक बेहतर माध्यम है
2- सुरक्षा की आवश्यकता
शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद व्यक्ति के व्यक्तित्व में सुरक्षा संबंधी आवश्यकता है प्रबल होती हैं मैस्लो के अनुसार व्यक्ति को सुरक्षा की आवश्यकता होती है यदि व्यक्ति में शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति सही रूप में नहीं हो पाती है तो वह स्वयं को उपेक्षित महसूस करता है और सुरक्षा ढूंढने संबंधी व्यवहार ह।वी प्रतीत होता है सुरक्षा संबंधी आवश्यकता आर्थिक और शारीरिक सुरक्षा से संबंधित होती हैं उदाहरण के रूप में आय के स्रोत की सुरक्षा, व्यक्तिगतसुरक्षा ,जोखिमों से बचने की सुरक्षा ,वृद्धावस्था में बीमा संबंधी सुरक्षा
3 - सामाजिक आवश्यकता - अपनेपन और प्यार की आवश्यकता -
जब शारीरिक और सुरक्षा आवश्यकता उचित ढंग से पूरी हो जाती है तो व्यक्ति के अंदर प्रेम एवं अपने संबंध की आवश्यकता प्राथमिकता के अगले क्रम में उभरती है सामाजिक आवश्यकताएं हैं अपनेपन की आवश्यकता प्यार संबंध और स्वीकृत की आवश्यकता है यह एक सामाजिक प्राणी के रूप में अपने जाने और सामाजिक रूप से स्वीकार किए जाने प्यार करने और प्यार पाने की क्रिया के रूप में प्रदर्शित होती हैं यह आवश्यकता है सामूहिक जीवन के साथ तादात्म स्थापित करने के लिए मनुष्य की आधारभूत मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति पर जोर देती है
4- सम्मान की आवश्यकता - मैस्लो के अनुसार सम्मान संबंधी आवश्यकता आत्म के बारे में जागरूकता और दूसरों द्वारा दिए गए पहचान से संबंधित होती हैं सम्मान संबंधी आवश्यकताओं के रूप में आत्म छवि, आत्मविश्वास आत्मसम्मान ,स्तर ,समाज में पहचान - प्रतिष्ठा दूसरों से प्राप्त ज्ञान और सम्मान से संबंधित होते हैं मैस्लों ने इसे दो श्रेणियों में बाँटा है -
1- आत्म सम्मान -आत्म मूल्यांकन एवं
2 - ख्याति, स्तर, सामाजिक सफलता और प्रसिद्धि
5- आत्म-सिद्धि की आवश्यकता-
मैस्लो द्वारा प्रस्तावित सोपान के क्रम में सबसे उच्चतम आवश्यकताओं में आत्म सिद्धि की आवश्यकता है मैसलों का विश्वास है की आत्म सिद्धि का अर्थ है व्यक्ति द्वारा आत्म अनुभूति और उसके सर्वोत्तम गुण की प्राप्ति इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति जो कुछ भी बन सकता है उसे बनना चाहिए उसकी क्षमताओं को वास्तविक बनाया जाना चाहिए इस प्रकार आत्म सिद्धि की आवश्यकता का अर्थ है आत्म पूर्ति आत्म अभिव्यक्ति आत्म- विकास , व्यक्तिगत उपलब्धि एवं क्षमताओं की पूर्ण प्राप्ति मैसलों के अनुसार आत्म सिद्धि तभी संभव है जब व्यक्ति की सारी पिछली आवश्यकताओं की पूर्ति हो गई हो व्यक्ति सामाजिक सांस्कृतिक एवं स्वयं पर लादे गए नियंत्रण से मुक्त महसूस करता हो वह पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं है लेकिन साथ ही सांस्कृतिक परंपराओं का गुलाम भी नहीं है
निष्कर्ष-
हम कह सकते हैं कि आवश्यकताओं के सोपान क्रम में आत्म सिद्धि के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति को अपने उत्तर जीव संबंधी आवश्यकताओं के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए उसे अपने काम का आनंद उठाना चाहिए उसे अपने परिवार समाज प्रति में अपने सामाजिक संबंध में संतुष्ट महसूस करना चाहिए l
Copy right ✅️
No comments:
Post a Comment