कुर्ट लेविन समूह गतिशील सिद्धान्त
भूमिका-
इस सिद्धान्त का प्रारम्भ का श्रेय मौलिक रूप से कुर्ट लेविन ( 1890 - 1947 ) को जाता है। जिन्होंने समूह गतिशास्त्र के नाम को प्रचलित किया था । 1945 में पहली ऐसी संस्था स्थापित की जो विशिष्ट रूप से समूह गतिशास्त्र की खोज में संलगन थे। इस संस्था में कई महत्व पूर्ण संस्थाओं का अध्ययन किया गया है। जैसे सामूहिक लक्ष्य, सामूहिक निर्णय सामूहिक संबंधता उत्पादन ' सामूहिक अन्त क्रिया, सामूहिक स्तर या मापदण्ड सामूहिक आकांक्षा आदि।
समूह गतिशास्र की अवधारणा -
1- क्रैच फिल्ड एवं क्रैच - समूह गतिशास्त्र से तात्पर्य वे परिवर्तन है जो समूहों में होते हैं ।
2- गुड के अनुसार- समूह गतिशास्त्र का विषय वह अन्तर्क्रियात्मक मनोवैज्ञानिक सम्बन्ध है जिसमें एक समूह के सदस्य सम्मिलित अनुभूतियों और भावनाओं के आधार पर सामान्य विवेक को विकसित करते है । इन पारस्परिक सम्बन्धों को समूह गतिशास्त्र की संज्ञा दी जाती है।"
विशेषताएं -
1 -क्रियाशील शक्तियों का ज्ञान
2 . समूह की शक्तियों का अध्ययन
3 - समूह परिवर्तन का अध्ययन
4 - समूह में प्रत्यक्षीकरण का विकास
5 -समूह में व्यक्तियो के मनोवैज्ञानिक सम्बन्धों का ज्ञान
6 - सामान्य लक्ष्य का अध्ययन
7 -समूह का नियन्त्रण
8 - समूह में एकता एवं सहयोग की भावना
9 - समूह पर नियंत्रण
10 - आपसी आभार
11- हम भावना का होना।
12 व्यवहार की समानता ।
समूहशास्त्र के तत्व या शैक्षिक निहितार्थ -
समूह मन व्यक्तिगत मन से भिन होता है। जिस प्रकार व्यक्ति के विचार इच्छाओं और क्रियाओं का संचालन एवं नियंत्रण उसका मन करता है उसी प्रकार समूह के सब कार्यों और व्यवहार का संचालन निर्धारण, नियन्त्रण और निर्देशन समूह मन करता है। समूह मन नेता द्वारा संचालित है नेता जो करता है समूह मन उधर ही जाता है जब हम किसी संस्था की बात करते है तो हमारा अभिप्राय समूह का ऊँचे स्तर से होता है।
। - समूह का स्थायित्व - एक समूह के रूप में स्कूल में यथासंभव भौतिक स्थायित्व बनाए रखना चाहिए । स्कूल के सदस्यों के सम्बन्ध अच्छे होने के लिए उनमें घनिष्ठता स्थापित होना आवश्यक है ।
2 - समूह चेतना - शिक्षा के क्षेत्र में समूह चेतना विवसित करना एक शिक्षक की सामाजिक जिम्मेदारी है।
3- सदस्यों में कार्य विभाजन - समूहभावना के लिए शैक्षणिक संस्थाओ में सदस्यो के मध्यकार्य का विभाजन अति आवश्यक है जो विद्यार्थियो में समूह गतिशास्त एवं समूह मन के पूर्ण विकास में सहायता प्रदान करता है।
4 - सामूहिक परम्पराओं का विकास - समूह शास्त्र स्कूल में पारस्परिक सम्बन्धों को निश्चित करते है। अच्छी सामूहिक परम्परा का निर्माण होने से सामूहिक जीवन में एक स्थायी सम्बन्ध बना रहता है । सामूहिक गतिशास्त्र स्कूल में छात्र परिषद' पुरातन छात्र समितियों की स्थापना करने और विद्यालय में समय समय पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करने में सहायता प्रदान करते है।
6- सामूहिक प्रार्थना सभा - प्रत्येक स्कूल में दैनिक कार्य शुरू करने से पहले प्रातःकाल प्रार्थना सभा होनी चाहिए इसमें सभी छात्र सम्मिलित हो जिससे उनमें सामूहिक भावना का विकास करने में सहायक होती है।
7 - समान विद्यालय की पोशाक - जब सभी छात्र एक ही तरह की समान पोशाक धारण करते है। तो उनमें किसी प्रकार के भेदभाव का विकास नहीं हो पाता । उनके पारस्परिक सम्बन्धों में एकता दिखाई देती है जो सामूहिक गति शास्त्र में सहायक होती है।
8 - देश भक्ति तथा नागरिकता की शिक्षा - छात्रों में सामूहिक शास्त्र के माध्यम से देशभक्ति एवं नागरिकता की शिक्षा दी जानी चाहिए।
नेतृत्व - Leadership
किसी भी राष्ट्र संस्था या समुदाय का विकास उसके नेता पर निर्भर करता है। राष्ट्र जिन सामाजिक सांस्कृतिक राजनीतिक तथा आर्थिक शिखरों पर पहुँच सकता है
नेतृत्व के प्रकार -
I - प्रभुत्व सम्पन्न अथवा अधिकारात्मक नेता -
इस प्रकार के नेता आक्रमण शील तथा ब्राह्यमुखी होते हैं। वह अपने सदस्यो को आदेश देता है और सदस्य उसके आदेश को मानते है। ऐसा नेता अपने समूहको अपने व्यक्ति गत हितों के लिए प्रयोग करता है। वह किसी प्रकार के तर्क वितर्क को सहन नहीं कर सकता ।
कैच और क्रचफील्ड - वह अकेला ही समूह की नीतियों को निश्चित करता है वह अकेला ही बड़ी बड़ी योजनाएं बनाता है उस अकेले को ही समूह की भावी के क्रमिक चरणों का ज्ञान होता है। वह अकेला ही सदस्यों की क्रियाओं और उनके अन्तर्सम्बन्ध को निश्चित करता है।
2- लोकतंत्रात्मक या प्रोत्साहदायक नेता -
इस प्रकार के नेता का सबसे बड़ा गुण यह होता है कि यह अपने समूह के बहुत निकट होते हैं। वह अपने समूह के सदस्यों से घुल मिल कर रहता है। वह उनकी समस्याओं , आवश्यकताओं , माँगो तथा भावनाओं को समझ कर उनको पूरा करने के साधनों को ढूँढ़ने का प्रयास करता है। वह तर्क शैली पर निर्भर रहकर समूह के हित में कार्यों को पूर्ण करने का प्रयास करता है। वह किसी रुढ़ि या संस्थीय एकाधिपत्य में विश्वास नहीं करता । वह समूह का वास्तविक निर्माता होता है।
3 . संस्थानिक नेता -
संस्थानिक नेता समूह का मुखिया होता है। किसी मंदिर का पुजारी , स्कूल, कार्यालय या कारखाने का मुखिया जिला का कलेक्टर, किसी देश का राष्ट्रपति, किसी कम्पनी का प्रधान आदि सभी संस्थानिक नेता होते है।
4- लेसेज-फेयर लीडरशिप या प्रतिनिधि नेतृत्व-
इस को हाथ से दूर दृष्टिकोण के रूप में जाना जाता है। इस शैली में नेता न्यूनतम निर्देश प्रदान करते हैं और टीम के सदस्यों को अपने निर्णय लेने और अपने काम की जिम्मेदारी लेने की अनुमति देते हैं। यह नेतृत्व शैली मानती है कि कर्मचारी स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम और आत्मनिर्भर हैं। -
विशेषताएँ -
1- निर्णय लेने के लिए टीम के सदस्यों का सशक्तिकरण।
2- नेता से न्यूनतम हस्तक्षेप
3. कर्मचारियों के लिए स्वायत्तता का उच्च स्तर
4. अत्यधिक कुशल और स्व-प्रेरित टीमों के लिए आदर्श।
इस नेतृत्व के लाभ -
1- रचनात्मकता और नवीन सोच को प्रोत्साहन।
2- कर्मचारियों द्वारा स्वतंत्रता की सराहना करने पर उच्च नौकरी संतुष्टि।
5- परिस्थितिजन्य नेतृत्व -
कर्ट लेविन के कार्य से प्राप्त अंतर्दृष्टि में से एक यह है कि सभी के लिए एक ही नेतृत्व शैली उपयुक्त नहीं होती। सबसे प्रभावी नेता वे होते हैं जो परिस्थिति, टीम की आवश्यकताओं और वांछित परिणामों के अनुसार अपने दृष्टिकोण को ढाल सकते हैं।
निष्कर्ष-
अन्ततः यह कहा जा सकता है कि इन विभिन्न शैलीयों में सबसे प्रभावी शैली परिस्थितिक शैली है जिसमें नेता अपने समूह के सदस्यों के साथ उनके व्यवहार विचार और समय के अनुरूप कार्य करवाते है।
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